BA Semester-5 Paper-1 Sociology - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2797
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समाजशास्त्रीय चिन्तन के अग्रदूत (प्राचीन समाजशास्त्रीय चिन्तन)

प्रश्न- मध्य-अभिसीमा सिद्धान्त का अर्थ व प्रकृति को समझाइये।

अथवा
मध्य-अभिसीमा सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिये।
अथवा
मध्य-अभिसीमा सिद्धान्त क्या है? समझाइये।

उत्तर -

मध्य-अभिसीमा सिद्धान्त का अर्थ व प्रकृति - "मध्य-अभिसीमा के सिद्धान्त" की अवधारणा को विकसित करने का श्रेय "श्री राबर्ट किंग मर्टन" को है। मर्टन के शब्दों में मध्य-अभिसीमा के सिद्धान्त वे सिद्धान्त हैं जो कि एक ओर दिन-प्रतिदिन के शोध में प्रचुर मात्रा में प्रकट होने वाले लघु किन्तु जरूरी कार्य निर्वाही प्राक्कल्पनाओं एवं दूसरी ओर सामाजिक व्यवहार, सामाजिक संगठन व सामाजिक परिवर्तन में समस्त निरीक्षित समानताओं की व्याख्या करने वाले एक समन्वित सिद्धान्त को विकसित करने के हेतु सब कुछ को सम्मिलित करते हुए किए गए व्यवस्थित प्रयत्नों के बीच में स्थित होते हैं।" और भी संक्षेप में, यदि हम एक ओर दिन-प्रतिदिन के शोध कार्य में उपयोगी छोटी-मोटी प्राक्कल्पनाओं को रखें एवं दूसरी ओर एक साथ अनेक सामाजिक घटनाओं की व्याख्या करने वाले समन्वित सिद्धान्तों को रखें तो मध्य- अभिसीमा के सिद्धान्तों का स्थान इन दोनों के बीच में होगा अर्थात् वे न तो प्राक्कल्पनाओं की भाँति इतने लघु प्रकृति के होंगे कि केवल मात्र एक कामचलाऊ सामान्यीकरण या निष्कर्ष के रूप में माना जाए और न ही वे इतने विस्तृत व समन्वित सिद्धान्त ही होंगे जिनके आधार पर 'बहुत कुछ' की व्याख्या सम्भव हो। श्री मर्टन ने लिखा है कि समाजशास्त्र में मध्य-अभिसीमा के सिद्धान्तों का मुख्यतः उपयोग प्रयोग सिद्ध अनुसन्धानों के मार्गदर्शन के लिए किया जाता है। इस प्रकार का सिद्धान्त एक ओर सामाजिक व्यवहार, संगठन व परिवर्तन की विशिष्ट श्रेणियों से काफी दूर जो कुछ निरीक्षण किया गया है, उसे बतलाने के लिए सामाजिक व्यवस्थाओं से सम्बन्धित सामान्य सिद्धान्तों एवं दूसरी ओर जिनका सामान्यीकरण नहीं किया गया है, ऐसे विवरणों का विस्तृत क्रमबद्ध वर्णन इन दोनों का मध्यवर्ती होता है। मध्य-अभिसीमा के सिद्धान्त सामाजिक घटनाओं के कुछ सीमित पहलुओं से सम्बन्धित होते हैं अर्थात् मध्य-अभिसीमा का सिद्धान्त ऐसा नहीं होता है कि वह एक ही समय में एक साथ सभी प्रकार के सामाजिक व्यवहार, सामाजिक संगठन और सामाजिक परिवर्तन के सम्बन्ध में हो, इसका सम्बन्ध तो एक सामाजिक घटना के कुछ निश्चित व सीमित पक्ष से ही होता है, जैसे सामाजिक गतिशीलता का सिद्धान्त, सन्दर्भ समूह का सिद्धान्त आदि।

कुछ उदाहरणों द्वारा मर्टन ने मध्य अभिसीमा के सिद्धान्त की प्रकृति को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। चुम्बक शक्ति के सम्बन्ध में गिलबर्ट के विचार आरम्भिक तौर पर बहुत ही सरल थे। जैसे पृथ्वी को एक चुम्बक के रूप में देखा जा सकता है। उसी प्रकार वायु के सम्बन्ध में श्री बॉयले का सरल विचार था कि वायुमण्डल को "हवा का एक समुद्र" कहा जा सकता है। इनमें से प्रत्येक सिद्धान्त कुछ अनुमानों को जन्म देता है, जैसे अगर वायुमण्डल को हवा का एक समुद्र मान लिया जाए तो एक पहाड़ की चोटी पर वायु का दबाव उसकी तलहटी की तुलना में कम होगा। इस प्रकार मूल विचार कुछ विशिष्ट प्राक्कल्पनाओं को जन्म देता है। इन प्राक्कल्पनाओं की परीक्षा इस रूप में की जाती है कि अनुमानों की जाँच प्रयोग सिद्ध रूप में होती है। इस प्रकार स्वयं विचार की उपयोगिता के आधार पर उसकी जाँच सैद्धान्तिक समस्याओं तथा प्राक्कल्पनाओं की अभिसीमा को समझकर की जाती है, जिसके आधार पर हमें वायुमण्डलीय दबाव की नई विशेषताओं का पता चलता है। बहुत कुछ उसी तरीके से, सन्दर्भ समूहों एवं सापेक्षित वंचना का विवेचन भी सरल विचार से प्रारम्भ होता है जिसे सर्वश्री, वाल्डविन आदि ने प्रस्तुत किया एवं सर्वश्री हाइमन वस्टूफर ने विकसित किया था। यह विचार यह था कि लोग अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों के स्तरों या मानकों को अपने-अपने सम्बन्ध में आँकने और मूल्यांकन करने का आधार मानते हैं।

अपनी साधारण बुद्धि के आधार पर हम यह समझते हैं कि एक सामूहिक तबाही की अवस्था में एक परिवार को जितनी अधिक हानि होगी वह अपने को उतना ही अधिक वंचित समझेगा क्योंकि हमारी आम धारणा यह है कि वंचित होने की मात्रा को एक परिवार अपनी वास्तविक हानि के आधार पर ही आँकते हैं। परन्तु सापेक्षित वंचना का सिद्धान्त बिल्कुल विपरीत प्राक्कल्पना को सुझाता है और वह यह है कि स्वांकन या अपने आपके सम्बन्ध में आँकना लोगों के द्वारा स्वयं की परिस्थिति के साथ दूसरों की परिस्थिति से तुलना करता है और फिर कहीं उस तुलना के आधार पर अपने-आप के सम्बन्ध में कोई निष्कर्ष निकालता है। इस रूप में उपरोक्त सिद्धान्त हमें यह बताता है कि कुछ विशिष्ट अवस्थाओं के अन्तर्गत, सामूहिक तबाही में वे परिवार जिन्हें कि गम्भीर हानि हुई है, अपने को कम वंचित अनुभव करेंगे। यदि उन्हें अपनी तुलना उन परिवारों से करने का अवसर मिले जिन्हें कि उनसे भी कहीं अधिक हानि पहँची है। उस अवस्था में वे अपनी वास्तविक हानि को भूलकर अपनी तुलना उनसे भी अधिक हानि प्राप्त परिवारों के साथ करेंगे और अपनी हानि को तुच्छ अनुभव करेंगे।

प्रयोग सिद्ध अनुसन्धान से भी यही बात प्रमाणित होगी और हम इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि सर्वाधिक क्षतिग्रस्त लोग उन लोगों के लिए एक सन्दर्भ समूह बन जाएंगे जिन्हें कि कम नुकसान पहुँचा है और वे अपनी तुलना उस सन्दर्भ समूह के साथ करेंगे। अगर अनुसन्धान कार्य को और आगे बढ़ाया जाए तो हम यह भी पाएंगे कि इस प्रकार आत्म- मूल्यांकन का प्रभाव उस समुदाय के लोगों की नैतिकता पर एवं दूसरों की सहायता करने की प्रवृत्ति पर भी पड़ेगा। इन सब बातों की जाँच हम वास्तविक निरीक्षण-परीक्षण और प्रयोग द्वारा भी कर सकते हैं। तत्पश्चात् हम इस परीक्षित निष्कर्ष को सरल रूप में इस प्रकार प्रस्तुत कर सकते हैं कि "जब कुछ ही लोग लगभग समान रूप से क्षतिग्रस्त होते हैं, तो प्रत्येक व्यक्ति का कष्ट और उसकी हानि अधिक प्रतीत होती है, परन्तु जब बहुत से लोग अत्यधिक विविध प्रकार से क्षतिग्रस्त होते हैं, तो उस अवस्था में काफी बड़ी हानियाँ भी छोटी दिखाई पड़ती हैं क्योंकि उनकी तुलना उससे भी बड़ी हानियों के साथ की जाती है।' यही मध्य-अभिसीमा का सिद्धान्त होगा।

उपरोक्त विवेचना से यह स्पष्ट है कि मध्य-अभिसीमा के सिद्धान्त सामाजिक व्यवस्थाओं से सम्बन्धित सब कुछ बताने वाले किसी एकमात्र सिद्धान्त से तार्किक तौर पर निकाले नहीं जाते हैं, फिर भी सिद्धान्त के रूप में विकसित हो जाने पर वे उसी के समान हो सकते हैं। अतः मान लेना ही उचित होगा कि समाजशास्त्र तभी प्रगति करेगा यदि उसका ध्यान मूलतः मध्य- अभिसीमा के सिद्धान्तों को विकसित करने की ओर होगा और यदि इसके विपरीत उसका ध्यान मुख्यतः सम्पूर्ण समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों को विकसित करने में लगाया गया तो समाजशास्त्र का विकास बाधा प्राप्त होगा या रुक जायेगा।

मध्य-अभिसीमा सिद्धान्त की आलोचना - मध्य-अभिसीमा के सिद्धान्तों को श्री प्लेटो से लेकर श्री सोरोकिन तक अनेक विद्वानों का समर्थन प्राप्त होते हुए भी यह सोचना गलत होगा कि सभी विद्वान बिना शर्त इन्हें दोषरहित मानते हैं अर्थात् ऐसे भी बहुत से विद्वान हैं जो कि मध्य-अभिसीमा के सिद्धान्त की नीति को अस्वीकार करते हैं और दोषों का उल्लेख करते हैं। उनके अनुसार मध्य-अभिसीमा के सिद्धान्त निम्न स्तर की बौद्धिक महत्वाकांक्षाओं के परिचायक हैं। श्री रॉबर्ट बीरस्टीड ने इस प्रकार के सिद्धान्तों की आलोचना करते हुए लिखा है कि, "हमें मानवसमाज की उन बृहत्तर समस्याओं को भी छोड़ देने को कहा जाता है जिनके विषय में सामाजिक विचारधारा के इतिहास में हमारे पूर्वजों ने भी सोचा था और उसके स्थान पर मध्य दूरी पर कदम रखने की बात श्री मार्शल द्वारा एवं मध्य-अभिसीमा के सिद्धान्तों की बात अन्य समाजशास्त्रियों द्वारा कही जाती है।' "क्या हम आधी विजय पाने की दिशा में प्रयत्नशील होंगे? मैने हमेशा यह सोचा है कि समाजशास्त्री भी जानते हैं कि सपना कैसे देखा जाता है एवं श्री ब्राउनिंग के साथ-साथ वे भी यह विश्वास है कि मनुष्य की अपनी पहुँच उसकी भुजाओं की पहुँच से आगे बढ़ जानी चाहिए।' श्री मर्टन ने लिखा है कि श्री बीरस्टीड ने मध्य-अभिसीमा के सिद्धान्तों को सम्भवतः दो कारणों से अस्वीकार किया है-

(1) प्रथमतः यह अवधारणा अभी नवीन और इसलिए हमारे लिए अजनबी है क्योंकि इस प्रकार की अवधारणा श्री प्लेटो के समय से किसी-न-किसी रूप में प्रचलित थी।

(2) श्री बीरस्टीड यह मान लेते हैं कि मध्य - अभिसीमा सिद्धान्त वृहत् समाजशास्त्रीय अनुसन्धान को पूर्णतया त्यागता है, परन्तु श्री बीरस्टीड का यह अनुमान भी गलत है क्योंकि इस प्रकार का अनुसन्धान भी आज विशिष्ट एवं परिसीमित सिद्धान्तों पर आधारित होता है।

कुछ विद्वान यह कहकर आलोचना करते हैं कि मध्य- अभिसीमा के सिद्धान्त समाजशास्त्र के क्षेत्र को असम्बद्ध विशिष्ट सिद्धान्तों द्वारा कुंठित करते हैं। फलतः इनसे समाजशास्त्र में अधिक विखण्डन की प्रवृत्तियों को प्रोत्साहन मिला है, परन्तु श्री मर्टन का तर्क यह है कि मध्य-अभिसीमा के सिद्धान्तों ने प्रयोग- सिद्ध जाँच - परिणामों को विखंडित नहीं अपितु संगठित किया है। सन्दर्भ - समूह का सिद्धान्त इसका एक उत्तम उदाहरण है। उपरोक्त विवेचना के आधार पर श्री मर्टन ने मध्य-अभिसीमा के सिद्धान्तों के विषय में जो निष्कर्ष निकाला है, उनमें से कुछ इस प्रकार हैं- 

(1) मध्य-अभिसीमा के सिद्धान्त कुछ ऐसे सीमित अनुमानों के समूहों से बनते हैं जिनसे कि विशिष्ट प्राक्कल्पनाएँ तार्किक तौर पर निकाली जाती हैं एवं प्रयोगसिद्ध अनुसन्धान द्वारा उनकी पुष्टि की जाती है।

(2) ये सिद्धान्त पृथक्-पृथक् नहीं रहते अपितु सिद्धान्त के एक विस्तृत ढाँचे के अन्तर्गत उन्हें संघटित कर दिया जाता है जैसा कि सन्दर्भ - समूह, आकांक्षा के स्तर एवं अवसर संरचना से सम्बन्धित सिद्धान्तों से स्पष्ट है।

(3) इस प्रकार के सिद्धान्त इतने विस्तृत होते हैं कि इनके अन्तर्गत सामाजिक व्यवहार और सामाजिक संरचना के विभिन्न पहलू आ जाते हैं।

(4) इस प्रकार के सिद्धान्त एक ओर लघु समाजशास्त्रीय समस्याएँ जैसे छोटे समूह से सम्बन्धित शोध एवं दूसरी ओर वृहद् समाजशास्त्रीय समस्याएँ जैसे - सामाजिक गतिशीलता से सम्बन्धित अध्ययन इन दोनों को आर-पार काटते हैं।

(5) मध्य- अभिसीमा के अनेक सिद्धान्त समाजशास्त्रीय विचारधारा की विविध प्रकार की व्यवस्थाओं से मेल खाते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में सोलहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक के वैज्ञानिक चिन्तन के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति क्या है? इसके प्रमुख प्रभाव बताइए।
  5. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के प्रमुख प्रभाव बताइए।
  6. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के सामाजिक प्रभाव बताइये।
  7. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के आर्थिक प्रभाव बताइए।
  8. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या अच्छे प्रभाव हुए।
  9. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज व अर्थव्यवस्था पर क्या बुरे प्रभाव हुए।
  10. प्रश्न- राजनीतिक व्यवस्था से क्या आशय है? भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  11. प्रश्न- भारतीय राजनीतिक व्यवस्था के निर्धारक तत्वों को बताइए।
  12. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्तियों ने कैसे समाजशास्त्र की आधारशिला एक स्वतन्त्र अध्ययन के रूप में रखी? विवेचना कीजिए।
  13. प्रश्न- औद्योगिक क्रान्ति के क्या सामाजिक एवं राजनीतिक परिणाम हुये?
  14. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के उद्भव एवं विकास को संक्षेप में समझाइये।
  15. प्रश्न- ज्ञानोदय से आप क्या समझते हैं। वैज्ञानिक पद्धति की प्रकृति और सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञाकि पद्धति के प्रयोग का वर्णन कीजिए।
  16. प्रश्न- "समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है।" विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति से आप क्या समझते हैं?
  18. प्रश्न- समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिये।
  19. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र का महत्व बताइये।
  20. प्रश्न- कॉम्ट के प्रत्यक्षवाद की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- कॉम्टे द्वारा प्रतिपादित चिन्तन की तीन अवस्थाओं के नियम की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  22. प्रश्न- कॉम्टे की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिये।
  23. प्रश्न- अगस्त कॉम्ट का जीवन परिचय दीजिए।
  24. प्रश्न- कॉम्ट के मानवता के धर्म का नैतिकता आधार क्या है?
  25. प्रश्न- संस्तरण के आधार अथवा सिद्धान्त बताइये।
  26. प्रश्न- समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवादी पद्धतिशास्त्र की मुख्य विशेषतायें कौन-कौन सी हैं?
  27. प्रश्न- कॉम्ट के विज्ञानों का वर्गीकरण प्रत्यक्षवाद से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  28. प्रश्न- कॉम्ट की प्रमुख देन की परीक्षा कीजिए।
  29. प्रश्न- प्रत्यक्षवाद क्या है?
  30. प्रश्न- कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद को परिभाषित कीजिये।
  31. प्रश्न- तात्विक अवस्था क्या है?
  32. प्रश्न- सामाजिक डार्विनवाद से आपका क्या तात्पर्य है?
  33. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक उद्विकास' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  34. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का जीवन परिचय दीजिए।
  35. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर के 'सामाजिक नियन्त्रण के साधन' सम्बन्धी विचार बताइए।
  36. प्रश्न- स्पेन्सर द्वारा प्रतिपादित सावयवी सिद्धान्त की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- समाजशास्त्र के क्षेत्र में हरबर्ट स्पेन्सर के योगदान का उल्लेख कीजिए।
  38. प्रश्न- अधिसावयव उद्विकास की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक एकता के सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  40. प्रश्न- यान्त्रिक व सावयवी एकता से सम्बन्धित वैधानिक व्यवस्थाएं क्या हैं?
  41. प्रश्न- दुर्खीम के श्रम विभाजन सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त को समझाइए।
  43. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइए।
  44. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिए।
  45. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा वर्णित आत्महत्या के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  48. प्रश्न- दुखींम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  49. प्रश्न- दुखींम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया, व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुखींम की देन की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- श्रम विभाजन समझाइये।
  54. प्रश्न- दुर्खीम ने यान्त्रिक तथा सावयवी एकता में अन्तर किस प्रकार किया है?
  55. प्रश्न- श्रम विभाजन के कारण बताइए।
  56. प्रश्न- दुखींम के अनुसार श्रम विभाजन के कौन-कौन से परिणाम घटित हुए? स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  58. प्रश्न- श्रम विभाजन, सावयवी एकता से किस प्रकार सम्बन्धित है?
  59. प्रश्न- यान्त्रिक संश्लिष्टता तथा सावयविक संश्लिष्टता के बीच अन्तर कीजिए।
  60. प्रश्न- दुर्खीम के सामूहिक प्रतिनिधान के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  61. प्रश्न- दुर्खीम का पद्धतिशास्त्र पूर्णतया समाजशास्त्री है। विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- सामाजिक एकता क्या है?
  63. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  64. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  65. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या के कारणों की विवेचना कीजिए।
  66. प्रश्न- सामाजिक एकता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  67. प्रश्न- सामाजिक तथ्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा प्रतिपादित 'समाजशास्त्रीय पद्धति' के नियम क्या हैं?
  69. प्रश्न- दुखींम की सामाजिक चेतना की अवधारणा का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  71. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  72. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- पैरेटो ने समाजशास्त्र को एक तार्किक प्रयोगात्मक विज्ञान नाम क्यों दिया? उनकी तार्किक प्रयोगात्मक पद्धति की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  76. प्रश्न- "इतिहास कुलीन तन्त्र का कब्रिस्तान है।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
  77. प्रश्न- पैरेटो की तार्किक एवं अतार्किक क्रियाओं की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  79. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइए।
  80. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिए।
  81. प्रश्न- परेटो का समाजशास्त्र में योगदान संक्षेप में बताइए।
  82. प्रश्न- तार्किक और अतार्किक क्रिया की तुलना कीजिए।
  83. प्रश्न- पैरेटो के अनुसार शासकीय तथा अशासकीय अभिजात वर्ग की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
  84. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  85. प्रश्न- मार्क्सवादी सामाजिक परिवर्तन की धारणा क्या है? समझाइए।
  86. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  88. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  89. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  90. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  91. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  92. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  93. प्रश्न- पूँजीवादी समाज में अलगाव की स्थिति तथा इसके कारकों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- संक्षेप में अलगाव के स्वरूपों को समझाइये।
  95. प्रश्न- मार्क्स ने पूँजीवाद की प्रकृति के विनाश के किन कारणों का उल्लेख किया है?
  96. प्रश्न- पूँजीवाद में ही वर्ग संघर्ष अपने चरम सीमा पर क्यों पहुँचा?
  97. प्रश्न- मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  98. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  100. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  102. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिये।
  103. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  104. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  105. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  106. प्रश्न- मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या किस तरह से की?
  107. प्रश्न- मार्क्स की सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या में प्रमुख कमियाँ क्या रहीं?
  108. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  109. प्रश्न- कार्ल मार्क्स का संक्षिप्त जीवन-परिचय तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  112. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  113. प्रश्न- वर्ग को लेनिन ने किस तरह से परिभाषित किया?
  114. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन सा स्वरूप पाया जाता था?
  115. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिए।
  116. प्रश्न- सामंती समाज में वर्ग व्यवस्था का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  117. प्रश्न- फ्रांस की क्रान्ति के महत्व एवं परिणामों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के इतिहास दर्शन का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के अनुसार वर्ग की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  120. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  121. प्रश्न- समाजशास्त्र के संघर्ष सम्प्रदाय में मार्क्स और डेहरनडार्फ की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- मार्क्स के विचारों का मूल्यांकन कीजिए।
  123. प्रश्न- "हीगल ने 'आत्म-चेतना' के अलगाव की चर्चा की है जबकि मार्क्स ने श्रम के अलगाव की।" स्पष्ट कीजिए।
  124. प्रश्न- मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  125. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद के आवश्यक लक्षणों की आलोचनात्मक परीक्षा कीजिए।
  126. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  127. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  128. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  129. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइये। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  130. प्रश्न- सत्ता की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। सत्ता कितने प्रकार की होती है?
  131. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा वर्णित सत्ता के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए।
  133. प्रश्न- वेबर के धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइए।
  134. प्रश्न- आदर्श प्रारूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर के "पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी विचारों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिये।
  136. प्रश्न- वेबर के समाजशास्त्र में योगदान पर एक लेख लिखिये।
  137. प्रश्न- मैक्स वेबर का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।
  138. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  139. प्रश्न- मैक्स वेबर की प्रमुख रचनाएँ बताइए।
  140. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  141. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  142. प्रश्न- मैक्स वेबर के आदर्श प्रारूप पर टिप्पणी लिखिए।
  143. प्रश्न- प्रोटेस्टेण्ट आचार क्या है? व्याख्या कीजिए।
  144. प्रश्न- मैक्स वेबर के सामाजिक क्रिया सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  145. प्रश्न- सामाजिक विचार के सन्दर्भ में मैक्स वेबर के योगदान का परीक्षण कीजिए।
  146. प्रश्न- शक्ति की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  147. प्रश्न- दुर्खीम एवं वेबर के धर्म के सिद्धान्त की तुलना आप किस तरह करेंगें?
  148. प्रश्न- सामाजिक विज्ञान की पद्धति के निर्माण में मैक्स वेबर के योगदान का वर्णन कीजिए।
  149. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रस्तुत 'सामाजिक क्रिया' के वर्गीकरण का परीक्षण कीजिए।
  150. प्रश्न- अन्तः क्रिया का क्या अर्थ है? अन्तःक्रिया के प्रकारों का उल्लेख करिये।
  151. प्रश्न- प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद क्या है? प्रतीकात्मक अन्तर्क्रियावादी सिद्धान्त की मान्यताएँ समझाइये।
  152. प्रश्न- जार्ज हरबर्ट मीड का प्रतीकात्मक अन्तः क्रियावाद बतलाइये।
  153. प्रश्न- मीड का भूमिका ग्रहण का सिद्धान्त समझाइये।
  154. प्रश्न- प्रतीकात्मक का क्या अर्थ है?
  155. प्रश्न- प्रतीकात्मकवाद की विशेषताएँ बताइये।
  156. प्रश्न- प्रतीकों के भेद या प्रकार बताइये।
  157. प्रश्न- सामाजिक जीवन में प्रतीकों का क्या महत्व है?
  158. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  159. प्रश्न- टालकाट पारसन्स का "सामाजिक क्रिया" का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिये।
  160. प्रश्न- टालकॉट पारसन्स का सामाजिक व्यवस्था सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  161. प्रश्न- आर. के. मर्टन का संक्षिप्त जीवन परिचय व रचनाएँ लिखिए।
  162. प्रश्न- आर. के. मर्टन की आर्थिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  163. प्रश्न- आर. के. मर्टन की बौद्धिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  164. प्रश्न- मध्य-अभिसीमा सिद्धान्त का अर्थ व प्रकृति को समझाइये।
  165. प्रश्न- आर. के. मर्टन का "प्रकट एवं अव्यक्त कार्य सिद्धान्त को समझाइये।
  166. प्रश्न- टॉलकाट पारसन्स के पैटर्न वैरियबल की चर्चा कीजिये।

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